Monday, August 25, 2014

Mom's travel experience in US

Preface: My Mom is guest author on my blog for this post. She recently paid me a visit in US for about a month. This is in Hindi but I will soon be writing an English translation. She writes some serious Hindi, doesn't she!

बस लोगो से सुनती थी किताबों, पत्रिकाओं व टीवी के माध्यम से वहाँ के दृश्य व संस्कृतियों को देख कर मन में बस आश्चर्य चकित व अतिश्योक्ति का अनुभव होता था। जब भारत के एयरपोर्ट पर मेरी बेटियां व अंकित मुझे पहुचने आए और मैं उन्हें छोड़ कर अंदर जाने लगी मैं बड़ी ही भाव विह्वल हो कर उन्हें प्यार से देखते हुए अंदर आई। अब मेरे साथ दीप्ति थी। वह अच्छी लड़की है उसने बराबर मेरा ख्याल रखा। पहली बार जब मैं भारत के एयरपोर्ट के अंदर आई तो देखती ही रह गए। सब कुछ इंटरनेशनल लुक का था। पर भाषा हिंदी थी। बड़ा ही सुखद लगा। अब थोड़ी प्रतीक्षा के बाद हम अबु धाबी के लिए फ्लाइट में गए। थोड़ी हिचक थी पर फ्लाइट में अच्छा लगा। तीन घंटे में हम अबु धाबी पहुंच गए। कुछ पता न था कहा जाना है। एक गाडी से हम गंतव्य तक पहुंचे। वहां पर्याप्त हिंदी सुनने व बोलने का मौका मिला। वहां के लोग अच्छे व हेल्पिंग थे। दूसरी फ्लाइट पकड़ने तक हमने अपनी नींद पूरी की। कोई डर व भय न था। सुबह एक व्यक्ति ने जगाया। उसने मुझे व्हीलचेयर पर बैठा कर चेक-इन करा कर एतिहाद फ्लाइट के गेट तक पहुचाया। गॉड ब्लेस्स हिम। एतिहाद बड़ी फ्लाइट थी। ऐसा लगा अब बेटे के पास जा रही हूँ। और वह अवश्य बेसबरी से मम्मी का इंतज़ार करता होगा। यात्रा के दौरान रह रह कर सौरभ की याद आती रही। सोच रही थी मन में वह ऐसी यात्रा कर के आता जाता है। फ्लाइट में मेरी विंडो सीट थी। कभी बाहर का बादलों के झुण्ड व क्षितिज का आनंद लेती तो कभी स्क्रीन पर फ्लाइट पाथ का दृश्य देखती। थोड़ी देर तक आँखें बंद करती फिर देखती की फ्लाइट कहा तक आई। यह एक खेल जैसा लग रहा था मुझे। फ्लाइट अटलांटिक ओसियन पार कर के टोरंटो के ऊपर होते हुए जा रही थी। फिर न्यू यॉर्क, और फिर एक लेक पार करके, फिर एक लेक पार कर के फिर शिकागो।

फ्लाइट लैंड करते समय शिकागो का दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। बहुत बड़ा था शिकागो का एयरपोर्ट। अगली फ्लाइट मिनियापोलिस की थी। हम उसकी प्रतीक्षा में चार घंटे वहीँ बैठे रहे और विभिन्न तरह के लोगों और उनकी समताओं व विषमताओं से भरी संस्कृतियों का अवलोकन करते रहे। आखिर वह घडी आ गई जब spirit फ्लाइट आ गई। हम लोग उसमे बैठे। एक घंटे में मिनियापोलिस आ गया। इस शहर का दृश्य भी अति सुन्दर था। हम अपना बैगेज ले कर सौरभ की प्रतीक्षा करने लगे। इस दौरान एक अजीब से टीस मन में हो रही थी, जैसे लगा मानो मैं बिल्कुल अकेली अनजान कहा आ गई। कुछ खोया सा लगा। मन नहीं लग रहा था। एक साथ दो फीलिंग्स आ रही थी। जैसे कुछ छूट गया है अंतर मन का। और शरीर यहाँ धकेल दिया गया हो। सौरभ के पापा के साथ ना रहने से ऐसा लग रहा था। उनके बिना बड़ी उदासीनता थी। मन दुखी, बस आँखें सब कुछ देख रही थीं। थोड़ी देर बाद सौरभ आ गया। पीछे से आकर मुझे पकड़ा। मन प्रफुल्लित हो गया। मानो कुछ छोड़ कर फिर कुछ पा गई। अपनी दुनिया मिली।

अब मैं सौरभ के साथ उसके घर आ गई। आने पर उसके कुछ friends मुझसे मिले। उस समय मुझे अच्छा लगा। उसके बाद कई दिनों में बीच बीच में कुछ अमेरिकन और इंडियन friends मिले। मैंने उन्हें डिनर भी बनाया। बच्चों के आने से मुझे बड़ी ख़ुशी मिलती थी। सौरभ ने मेरे स्वास्थ्य व भावना का पूरा ख्याल रखा। वह मुझे स्वास्थ्य-प्रद चीज़े ही खाने को कहता है, और समय समय पर मेरी तबियत की जानकारी रखता है।

सभी बच्चे बहुत नेक व समझदार है। सभी में प्रतिभाएं है। जो सम्मान मुझे अमेरिकन व इंडियन बच्चों ने दिया उसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ। जितना हो सका उतना सौरभ व उसके दोस्तों ने मिलकर मुझे मिनेसोटा व मिनियापोलिस के दृश्य व दार्शनिक स्थल दिखाए ।

धीरे धीरे कब वापस जाने का समय पास आ गया पता ही न चला। अमेरिका का यह स्टेट देख कर मैं यदा कदा आश्चर्य चकित हो जाती। यहाँ की प्राकृतिक छटा व सौंदर्य अद्भुत है। यहाँ के लोग अत्यंत स्मार्ट व फुर्तीले हैं। हर व्यक्ति बिजी व अपने हेल्थ के प्रति सजग है। खाने पिने व रहन-सहन का अपना अलग ढंग है। यह सब रियलिटी से जुड़ा लगता है। यहाँ स्वतंत्रता में संतुलन है। लड़की-लड़के का भेद-भाव नहीं है। वर्गानुगत भेद-भाव भी नहीं है। state को ही देख कर अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अमेरिका प्राकृतिक, टेक्नोलॉजी, टैलेंट्स, का धनी देश है। साफ़-सुथरा प्रदुषण-रहित वातावरण है। ट्रैफिक रूल्स का अक्षरश: पालन होता है। बिजली पानी की किल्लत नहीं है। एसी, कूलर, गीजर व रूम-हीटर्स जुटाने का बोझ नहीं है। ईर्ष्या होती है यह सब देखकर अपना देश ऐसा क्यों नहीं है। सब कुछ दूसरे का और आंतरिक स्वतंत्रता का आभाव सा लगता है।

माना की यहाँ की भौगोलिक स्तिथि व पर्यावरण उत्तम है। परन्तु अपना देश भावनात्मकता का धनी है। समाज शब्द की व्यापक व सच्ची सार्थकता स्वदेश में है। अपने उत्सव, अपने त्यौहार,अपनी आध्यात्मिकता, धन्य है। अपना स्वतंत्रता दिवस हृदय को रोमांचित करता है। धन्य है गीता का कर्म ज्ञान व अपना राष्ट्रीय गान। कोई मनुष्य किसी भी विकसित से विकसित देश में क्यों न पहुंच जाए स्वदेश की छोटी से छोटी यादें हृदय में समाई रहती हैं। भावनात्मक ख़ुशी व संतुष्टि स्वदेश ही प्रदान करता है।
                                                      जय हिन्द। जय भारत।

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So here is my loose translation of the text. It ma not carry the exact feelings because of my vocabulary (or its lack) but I think it has the central idea:
I only used to hear it from people, read it in magazines and see on TV about the scene and cultures there. They instilled in my mind wonder and superfluity there. When my daughters and Ankit came to airport in India to drop me and I was entering airport I kept looking at them with affectionately all the while. Now Dipti was with me. 
She is a nice girl. She took care of me throughout the journey. When I entered the airport in India for the first time I kept staring at everything. Everything had international look. But the language was Hindi. It felt very pleasant. Now, after a short wait we boarded on flight for Abu Dhabi. I felt little hesitant but it felt nice in the flight. In three hours we reached Abu Dhabi. We did not know where to go after here. We arrived at the destination terminal in a bus. We got chance to hear and speak enough Hindi here. People there were nice and helping. We got some sleep before catching the next flight. There was no fear of any kind. In the morning we were awakened by a someone. He took me to the check-in counter and then to the flight gate in a wheelchair. God bless him. Etihad was a huge flight. It felt that now I am going to see my son. And definitely he must be waiting eagerly for Mom. I kept missing Saurabh during the flight. I was imagining that every time he travels it should be a flight like this. I had a window seat in the flight. Every now and then I would enjoy looking at the sea of clouds and the horizon outside. Next moment I would follow the flight path on the screen. Then I would close my eyes and take a small nap. All this was like a little game. Out flight crossed Atlantic ocean and flew above Toronto. Then came New York, and then a lake, and another lake and then finally Chicago!

The view of Chicago was beautiful as the flight was landing. It was huge airport. Next we were to fly to Minneapolis. We sat there waiting for 4 hours for the flight at the airport full of motley of people and observed the similarities and differences. Finally the moment came when our flight came. We boarded the flight. In one hour we were in Minneapolis. This city was also very beautiful. We collected our baggage and waited outside for Saurabh. At this time there was a strange unknown feeling. It felt like I am alone and lost in a nowhere place. It felt like something was lost. I could not put my mind at ease. Mixed feelings of losing something and getting something were running through the head. Like I lost something from inside. As if the soul is left behind and body has been pushed here. Saurabh's dad's presence was missing. There was mood of melancholy without him. Eyes were live, looking at everything but everything inside was sad. In the meanwhile Saurabh was here. He hugged me from back. I was delighted to see him. I found my world again.

Now I came to Saurabh's place with him. Few of his friends came to meet me. I was happy to see them. In the next few days several of his American Indian friends met me. I also cooked them dinner. I was always glad when the children came to the house. Saurabh took care of my emotions and health. He only let me healthy food and inquired about my health from time to time. 

All the children were very nice and intelligent. They were all talented. I'm grateful for the respect I received from them. Saurabh and his friends showed me around in Minneapolis and Minnesota as much as they could.

Sooner than I could realized it was time to go back. I was amazed after seeing this state of America. The natural beauty and scenery here is wonderful. People here are smart and active. Everyone is busy and aware towards one's health. They have there own unique food and lifestyle. It all seems connected to reality. There is a balance in freedom. There is no gender discrimination. No class discrimination. Judging by this state of America it is not difficult to guess that U.S. is a nation rich in nature, technology and talents. Clean and pollution free environment everywhere. Traffic rules are followed verbatim. There is no dearth of electricity and water. There is no burden of getting AC,cooler, water-heaters, room-heaters, etc. I get bit jealous on seeing all this. Why can't our country be like this! Still everything seems foreign and absence of internal freedom. 

Agreed that the environment and the material position and environment are best but our home country is rich in spirituality. In India true and inclusive meaning of society is realized. Thanks to our festivals, our spirituality. our independence day romanticises the heart. Thanks to 'karma gyan' of Bhagwat geeta. Thanks to our national anthem. It doesn't matter if one is in most forward and developed countries one always carries eve the smallest memories in ones heart. Only our home country can provide emotional happiness and satisfaction.
                                           Hail India. Hail India.

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